हस्तक्षेप का फल

हस्तक्षेप का फल
करटक ने कहाः   दमनक ! हमे दुसरो के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।  जो ऐसा करता हैं वह उसी  बन्दर की  तरह तड़प  तड़प कर मरता है, जिसने दूसरे  के काम में कौतूहलवश  व्यर्थ  में हस्तक्षेप किया था।
       दमनक  ने पूछा 'यह क्या बात कही  तुमने ?'
       करटक  ने कहा: 'सुनो:
एक गांव के पास एक मंदिर बन रहा था। वहां के कारीगर दोपहर के समय भोजन के लिए गांव में आ जाते थे।
एक दिन जब वे  गांव में आए  हुए थे तब बंदरो  एक दल इधर -उधर घूमता हुआ वही जा पहुंचा। कारीगर तो थे नहीं। बंदरो ने  उनके काम में खूब उथल-पुथल मचाई।
      एक जगह बड़े से शहतीर को चीरने का काम चल रहा था। शहतीर को आधा चीरकर उसमे कील फसा  दी गई थी। एक बंदर उस कील को उखाड़ने की कोशिश में जुट गया। उसे पता न था कि वह  शहतीर के चिरे  हुए भाग में फस भी सकता है।  बस वही हुआ।  जैसे ही कील निकली की बंदर शहतीर के चिरे  हुए भाग में फस गया।  और चीख चीख कर मर गया।
इसलिए में कहता  हूँ  कि  हमे दूसरो  के काम में  हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

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